ربما… .
ترتبكُ هذهِ الأنشودةُ..
من حَدسي..؟؟
لِتضل َ مغمضةً…
أعينُ النخاسينَ…
وباعةُ الصدقاتْ..
فجرذٌ كبير
أبتلعَ.. لقمةًسائغة.
…..
شاسعةٌ تلك المحارقُ ..
تمتدُ… .
من صنوفِ الكتُيباتِ…
لتمتلكّ غزواتِ الطين…
وترعد… ترعد ..
حتى
تمطرَ…
آخر
أنباءِ
الكتابةِ
ثم! ؟
أين ينحدرُ تلُ الرفوف؟؟
وحُمرةُ الاصواتِ..
ألم تكن..
سنابك.... أحرف. ؟؟
…………
لغتي..
كسبيلِ طفلٍ
مفطومْ.......
الى حِجرِ
أُمٍ
مات
حليبها…..
وبعضُ الترقباتِ للوطنْ
كيومِ
دفنِ
أحجارِ
الصمتِ
عند شاهقةِ
جبل الغربة….
كذلكَ… نعيش ُبعينِ الضاد
ونهرٍ ..رُبماجفَ!!
عند ذلك الوطن.
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